रायपुर। विधानसभा विशेष सत्र के अंतिम दिन विशेष सत्र बुलाने पर पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोंक-झोंक देखने को मिला। विपक्ष ने कहा कि सरकार अध्यादेश के जरिए भी कानून बना सकती है, विशेष सत्र सिर्फ प्रशासनिक और राजनीतिक आपदा की स्थिति में ही बुलाया जा सकता है। व्यवस्था देने की मांग विधानसभा अध्यक्ष की। इस पर डॉ. चरणदास महंत ने व्यवस्था देते हुए कहा कि विधानसभा का सत्र संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप ही बुलाया गया है।
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने विशेष सत्र के औचित्य पर सवाल खड़े किए और कहा कि आखिर विशेष सत्र का औचित्य क्या है? उन्होंने कहा कि कानून बनाने के लिए अध्यादेश लाने का प्रावधान है। सामान्यत: विशेष प्रशासनिक और राजनीतिक आपदा पर ही विशेष सत्र बुलाया जा सकता है। उन्होंने राज्य सरकार के बिल पर कहा कि इस कानून में कुछ नहीं है। खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत चरितार्थ करती है। अग्रवाल ने कहा कि संविधान और संसदीय कार्य प्रणाली में विशेष सत्र का कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने सोचा नहीं होगा कि संसदीय व्यवस्था का इस तरह माखौल उड़ाया जाएगा। पूर्व मंत्री ने कहा कि विशेष सत्र कब बुलाना चाहिए, इस पर व्यवस्था आनी चाहिए। इस दौरान सरकार पर राज्यपाल के अपमान का भी आरोप लगाया। संसदीय कार्यमंत्री की आपत्ति के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने टिप्पणी को विलोपित कर दिया। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने सरकार पर संसदीय परम्पराओं को तोडऩे का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में जितनी परम्पराएं टूटी है, देश की किसी भी विधानसभा में नहीं टूटी होगी।
संसदीय कार्यमंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि वालमार्ट, अंबानी और अडानी को मंडियों को सौंपने की बात हो रही है। उन्होंने कहा कि विपक्ष के सदस्य मंडियों में 16 सौ रूपए क्विंटल में धान बिकने की बात कह रहे हैं, यह सब केन्द्र की कानून की वजह से है। उन्होंने कहा कि राजभवन के राजनीतिकरण की कोशिश का विरोध किया गया है। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच तीखी नोंक-झोंक हुई। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने व्यवस्था दी कि विधानसभा का सत्र संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप आहूत किया गया है।